- 40 Posts
- 40 Comments
प्रेम क्या है? इस सवाल में मुझे बहुत परेशान कर रखा है. आज जिस तरह से लोगो को प्यार हो रहा है उससे लगता है की प्यार की समझ धीरे धीरे ख़त्म होती जा रही है. मेरी जितनी समझदारी है और जैसा मैंने देखा है उसके हिसाब से प्यार/ प्रेम क्या है इसे मैंने इन लाइनों में लिखा है……..
“उम्र की बंदिशों से आजाद है प्रेम,
समाज की नजर में पाप है प्रेम,
लोक लाज के भय से कंही ऊपर है प्रेम,
परमात्मा के सबसे निकट है प्रेम,
मानव का मानव से सम्बन्ध है प्रेम,
दो दिलो को जोरता है बस प्रेम,
पतझर में भी फूल खिलाता है प्रेम,
रोते हुए बच्चे हो हसता है प्रेम,
सुबह की लाली है प्रेम,
चाँद की चांदनी में है प्रेम,
बदलो से जो है बरसता,
वो अमृत है प्रेम,
दृगों से जो है छलकता,
वो मोती है प्रेम,
प्रेम शाश्वत है, अनश्वर है,
सनातन सत्य है प्रेम,
ये धरती,अम्बर, सृष्टि,
सब है सिर्फ प्रेम.“
…………………… दरअसल प्रेम मूक, बधिर और अंधी होते हुए भी इतनी शक्तिशाली है जिसका असर बरसो तक रहता है.
अभिजीत साहू.
(abhijeet.sahu84@gmail.com)
(993915461)
Read Comments