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“प्रेम- Valentine Contest”

my thoughts
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क्यों?
मैं नहीं जानता,
अब तक तुम सिर्फ मेरे खयालो में हो
जिससे मैं घंटो अकेले बाते करता हूँ,
क्यों?
मैं नहीं जानता,

चांदनी रात में तुम्हारा अक्स, चाँद में तलाश,
उसे एक-टक चकोर सा निहारते रहता हूँ,
और, अमावस की स्याह रातो को,
मद्धिम रौशनी में , टिमटिमाते तारो के बीच,
तुम्हे बैचेन हो ढूंढता हूँ,
क्यों?
मैं नहीं जानता,

जब कभी हवा का कोई झोका,
रजनीगंधा की खुशबू लिए,
मेरे पास से गुजरता तो लगता,
जैसे तुमने मेरा आलिंगन लिया हो,
और तब तुम्हारे वजूद के एहसास से,
मेरी धरकने बढ़ जाती,
क्यों?
मैं नहीं जानता,

कोयल की कूक में तुम्हारी आवाज
सुनाई देती है, जैसे तुम मुझे बुला रही हो,
नदी का झर-झर बहता पानी,
तुम्हारे पायलो की झनर-झनर का आभास कराते है,
क्यों?
मैं नहीं जानता,

मैं नहीं जानता की,
कौन हो तुम या कैसी हो,
लेकिन तुम मुझमे हो, जैसे,
शक्ति, शिव में,
भक्ति, प्रेम में,
सृष्टि, परमात्मा में.

क्यों?
मैं नहीं जानता,
शायद यही मेरा प्रेम है….
जिससे मैं घंटो अकेले बाते करता हूँ,
क्यों?
मैं नहीं जानता,
अभिजीत साहू
(9939195461)

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