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मोहब्बत और आदमी

my thoughts
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जब मैं पैदा हुआ था,
मेरे दो हाथ , दो पैर
दो कान, दो आखे,
एक मुह और
एक नाक थी
मैं इन्सान था
फिर जैसे जैसे मैं बढा
कुछ न कुछ बनता ही गया
बेटा, भाई, पति, पिता, और
न जाने क्या क्या ..
मैं वो सब बना जो मैं बनना चाहता था
कभी तो मुझे वो भी बनने को मजबूर होना परा
जो मैं कभी बनना नहीं चाहता था
जब कभी किसी बेसहारा के हाथो को थामा
किसी रोती आँखों के आसू पोछे
किसी उदास चेहरे पे
पल भर को मुस्कुराहट दी
उसने मुझे देवता बना दिया
जब मैंने जुल्म किये
पानी की तरह खून बहाया
उस सर्वशक्तिमान की सत्ता को चुनोती दी
तब मैं राक्षस बन गया
जीवन मे हर कदम पे
मुझे कभी अच्छा तो कभी
बुरा बनना परा
लेकिन इन सब से इतर मैं जो था
उसका अन्श मुझमे मोजूद था
इसलिए देखो आज मैंने
मोहब्बत की और आदमी बन गया

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